Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराप्ययनस्त्रे
छाया-सुषु चापि प्रतियुद्धजीवी, न विश्वसेत् पण्टि 1 आशुमक्ष ।
घोरा मुहर्ता अचल शरीर, भाण्डपक्षीय चरेदप्रमत्तः ॥ ६ ॥ टीका-'सुत्तेसु' इत्यादि । ___आशुपज्ञा आशु शीघ्रमुत्पन्ना कर्तव्याकर्तव्येषु प्रवृत्तिनिवृत्तिविपयिका प्रज्ञामतिर्यस्य स तया, प्रत्युत्पन्नमतिरित्यर्थः । कर्तव्याकर्तव्यझटितिशानवानिति यावत् । प्रतिबुद्धजीवी प्रतियुद्धः द्रव्यतो जामत् , भारत:-प्रमादरदितश्च भूत्वा जीवत्येव शीलः, पण्डित.-सदसद्विवेकनान मेधानी पुरुषः, सुप्तेपु-द्रव्यतो निद्रायुक्तपु, अपि भारतः सुप्तेषु-धर्म प्रत्यजाग्रत्सु ससारिजीवेषु न विश्वसेत्सनिवास न कुर्याद;
धनादिक जब अपने किये हुए कर्म के भोगकाल में रक्षा करने के लिये ममर्थ नहीं होता है तो फिर क्या करना चाहिये ? इस प्रकार की आशका का उत्तर इस नीचे की गाथा धारा सूत्रकाह देते है'सुत्तेसु'-इत्यादि।
अन्वयार्थ-(आसुपन्ने-आशुप्रज्ञ.) कर्तव्याकर्तव्य कार्यो में जिसको प्रवृत्तिनिवृत्तिविषयक प्रज्ञा शीघ्र उत्पन्न हो जाती है ऐसा प्रत्युत्पन्नमतिवाला, तथा (पडिबुद्धजीवी-प्रतिद्धजीवी) द्रव्य की अपेक्षा जागृत होकर, तथा भाव की अपेक्षा प्रमादरहित होकर जीनेबाला, एव (पडिय-पण्डिनः) भले बुरे का विवेक करनेवाला, ऐसा मेधावी पुरुष (सुत्तेसु-सुप्तेपु) द्रव्यकी अपेक्षा सोये हुए, भाव की अपेक्षा धर्म के प्रति सचेत नहीं हुए समारी जीवों में (न वीससे-न विश्वसेत) विश्वास नहीं करें-उनका ससर्ग नही करें। अथवा (पडिबुद्धजीवि
જ્યારે પિતાના કરેલા કર્મના ભેગવવાના સમયે ધન આદિ તેની રક્ષા કરવા અસમર્થ બને છે તે પછી શું કરવું જોઈએ? આ પ્રકારની આ શ કાના उत्तर सूत्र२ मा नायनी गाथा दा॥ मा छ-'सुत्तेसु' त्यादि
मन्वयार्थ-आसुपण्णे-आशुप्रज्ञ ४०५ मन मतव्य आयमा प्रवृत्ति ४२वी ४ નિવૃત્તિ રાખવી એ વિષયનુ વિવેક જ્ઞાન જેને તાત્કાલિક થાય છે એવા પ્રત્યુત્પન્ન भतिवाणा तथा पडियुद्ध जीवी-प्रतिवुध्धजीवी द्रव्यनी अपेक्षा त मनी तथा सावनी अपेक्षा प्रभाह २हित मनी लावा मन पडिय-पण्डित साभुराना विव समापापा मेरा भेधावी ५३५ सुत्तेसु-सुप्तेपु द्र०५नी अपेक्षा સતેલા અને ભાવની અપેક્ષાએ ધર્મ તરફ સચેત નહી બનેલા એવા સ સારી लाभ न वीससे-न विश्वसेत् विश्वास नही २-यन सस नही रे मयमा पडिबुद्धजीवी सुतेसुन पीससे प्रतिबुध्धजीवी सुवेपुन विश्वसेत् ,"