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प्रदोधिनी टीका पद १७ ० ८ सलेश्याहारादिनिरूपणम्
औधिकानाम्, ज्योतिष्कवैमानिक आद्यासु तिसृषु लेश्या न पृच्छयन्ते, एवं यथा कृष्ण
विचारिदास्तथा नीललेश्या विचारयितव्याः, कापोठलेश्या नैरयिकेभ्य आरभ्य यावद् वानव्यन्तराः, नवरं कापोतलेश्या नैरयिका वेदनायां यथा औधिकाः, तेजोलेश्या खलु भद्दन्त ! अम्रुरकुमाराणां ताचैव पृच्छाः, गौतम ! यथैव भविकास्तथैव, नवरं वेदनायां यथा ज्योतिष्काः, पृथिव्यव्वनस्पतिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनि मनुष्याः यथा औधिकास्तथैव उनमें से जो सम्यग्दृष्टि हैं (ले तिविहा पण्णत्ता) वे तीन प्रकार के कहे हैं (तं जहा - संजया, असंजया, संजया संजया) वे इस प्रकार - संयमी, असंयमी और संयम संयमी ( जहा ओहियाणं) जैसे औघिकों का ( जोइसिय वैमाणिया) ज्योतिष्क और वैमानिक ( आइल्लासु) आदि की (तिसु लेस्सासु) तीन लेश्याओं में (ण पुच्छिज्जंति) नहीं पूछे जाने चाहिए ( एवं ) इस प्रकार ( जहा ) जैसे (किव्हा लेस्सा) कृष्णलेश्या (विचारिया) विचारी ( तहा नीललेस्सा विचारेroat) इसी प्रकार नीललेश्या भी विचारनी चाहिए । (काउलेस्सा) कापोतलेइया (नेरइरहितो ) नारकों से (आरम्भ) आरंभ करके (जाव वाणमंतरा) यावत् वानव्यन्तरों तक (नवरं ) विशेष काउलेस्सा नेरइया) कापोतलेइयावाले नारक (वेयणाए) वेदना की अपेक्षा (जहा ओहिया) जैसे औधिक (तेउलेस्सा णं भंते ! असुरकुमाराणं ताओ चैव पुच्छाओ) तेजोलेश्यावाले असुरकुमारों का इत्यादि वही पूर्ववत् प्रश्न (गोयमा ! जहेब ओहिया तहेव ) जैसे सामान्य कहे उसी प्रकार (नवरं वेषणाए जहा जोइसिया) विशेष - वेदना से ज्योतिष्कों के समान (पुढवि - आउ - वणस्सह-पंचिदियतिरिक्ख मणुस्सा) पृथ्वी, अपू, वन
विशेषता छे (जाव) यावत् (तत्थगं जे ते सम्महि । ) तेमनामाथी ? सम्यग्दृष्टि छे (ते तिविहा पण्णत्ता) ते त्रयु प्रहारना उद्या है (तं जहा, संजया, असंजया, संजया संजया) ते मा प्रहारे- सायमी, असंयमी ने संयमास यभी (जहा ओहियाण) नेवा सविना (जोइसिया वेमाणिया) ज्योतिष्ठ भने वैमानि (आइल्लासु) पडेसानी (तिसु लेस्सासु) त्र श्यामां (ण पुच्छिज्जति) न कुछ लेह से (एव) से अठारे (जहा) व ( किण्हा लेस्सा) सॄष्ट्युलेश्या (विचारीया ) दियारी ( तहा नीललेस्सा विचारेयव्वा) में प्रारे नीससेश्या ययु वियरवी लेई मे (काउलेस्सा) पोतसेश्या (नेरइएहि तो ) नारथी (आरम्भ ) मारल ४रीने (जाव वाणमंतरा) यावत् वानव्यन्तरो सुधी (नवरं ) विशेष (काउलेस्सा नेरइया) भयोत दोश्यावाणा ना२४ ( वेयणाए ) वेहनानी अपेक्षाथी ( जहा ओहिया) देवा मौधि४ (देउलेस्साणं भंते! असुरकुमाराणं ताओ चैत्र पुच्छाओ) तेलेोश्यावाजा असुरकुमारो सुधी पूर्ववत् प्रश्न (गोयमा ! जहेब ओहिया तद्देव) नेवा सामान्य ह्या ते ५५रे (नवरं वेयणाए जहा जोइसिया) विशेष वेहनाथी ज्योतिष्ठानी सभा ( पुढवि - आउ वणस्सइ-पंचि दियतिरिक्खमणुस्सा) पृथ्वी, मयू, वनस्पति, यथेन्द्रिय तिर्यय, मनुष्य