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* लॅबेचू समाजका इतिहास * मंत्री थे निम्नलिखित ६ और हमीर तथा गभूरमलजी इन आठो भाइयोंने बापकी पक्ष तथा राजाकी पक्षसे ( मदतसे ) जिन पूजा प्रतिष्ठा कराई सर्व भाई विरादरीकी बड़ी खातिरकी इससे हमीरको संघाष्टक पद मिला अर्थात् श्रावक धर्म जिनधर्म पालने वाले श्रावक सङ्घके अधिपति होनेसे संघी पदमिला जब यहाँ सिकस्ति पड़ी तव अटेरको गये यह सोनियोंमेंसे सङ्घी गोत्र हुआ।
(३) तीसरा पोद्दार गोत्र श्रीभागीरथजी राजाके यहाँ नोकरी पेसा ( व्यावसाय) गाउनकी मालगुजारी रुपये पोद्दारके जमा होना जिससे पोद्दार गोत्र हुआ पीछे पोद्दार हतिकांति ( हस्तिक्रन्त ) गए कोई समयमें अच्छा शहर था चम्मिल ( चर्वणा ) और जमुना नदीके बीच चम्मिलक किनारे वसाहै जिसका उल्लेख अभी कुछ दिन पहले जैनमित्रमें दिया था ३१ वर्ष हुआ जहां पर श्रीमान् बाबू मुन्नालाल द्वारकादासजी पोद्दारकी जमीदारी है और उनके पूर्वजोंका विशाल जिनमन्दिर है जिसकी प्रतिमायेंजी बहत स्थानोमें भाई लोगोंको आवश्यक समझ उन्हों नेदी है और अधिकतर इटावामें एक श्रीविशाल दि०जिन मन्दिर