________________
२६० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
कवित्त रपरियानको
(सवैया ३१ सा) ब्याहन जु साज पूतनाती धीर धरज के रप्परिया सुभट सवै विधि जो मुहाये हैं। साहजो दानी हेमराज जयसिंघ रामसिंह उमेदरायजूके कर कंकन बँधाये हैं। शाल सिरो पाये औ रुपैया घोड़े दान करि लऊराइ नेगिनिके दारिद नशाये हैं ॥ अलोल मणि जूके व्याहि शाह दयारामज बंदेलखण्ड जीति आछोनाम करि आये हैं ॥ ६०॥ ये सब कवित्त राय नगर से राय भाटों से प्राप्त हैं । अटेर के भोगीराइसे प्राप्त कवित्त कानूनगो गोत्रका
(सं० १९१४ जब गदर परो करहलको रक्षा करी)
परो है कठिन काम जिहतिह अंगद सो रोपोपांउ रहो ठहराइक।। जहाँ कोऊ नांहि साथी तहाँ भयो, धर्म तेरो साथी प्रबल कथासी कहै कौन समझाइकै ॥ लड़िकाई तँ चैतसिंह शाहन को शिरमोर । कीर्ति अथाह गई कहै कौन कविगाइकें । नाथ मगवन्तज के महासिंह महाबाहु सो आछी विघि करहल तुम राखी है वसाइके ॥६१॥