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४४२ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * तो ये विवाहादि प्रथा नहीं, अहिंसादि ब्रतोंका पालन नहीं और उन्नतिशील देश है, इसके उत्तर में कथन है कि वहाँ पर भी यही धर्मप्रचार रहा है। राणा भीमसिंह पद्मिनी का विवाह सिंहलद्वीप ( सिलोन ) लंकामे करके लाये अब भी ऐसे पाये जाते हैं जो निरामिषभोजी दूध तक नहीं लेते कि दूधमें भी कोई २ समय निचोड़कर दुहने में रक्तका अंश आ जाता है, परन्तु यह गलती है । दूध न निकालनेसे गायको तकलीफ होती है उसमें निकालने में कष्ट नहीं कोई गलती करे तो ऐसा होता है । दूसरे जैन शास्त्रपुराणोंमें आदिपुराण पद्मपुराण आदिमें कि ८४ चौरासी खनके मकान होते पाताल लङ्कामें विराधित राममन्द्रजीको लिवा गया रखा सीताजीकी खोजकी सो पाताल लंका अमेरिका ही है। अब सब जगह भ्रष्टाचारी हो गया रावणके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद इन्द्रजीत तपस्या कर बड़वानीसे मोक्ष गये तो भरतक्षेत्रमें ही ये प्रदेश थे अब युरुपको हम हनुरुद्दीप लिखही आये हैं अब कुछ समयसे परिवर्तन हो गया तो भी क्या उन प्रदेशोंमें विशेष धर्म साधन नहीं होता जहाँ सर्दी गर्मी विशेष रहती है।