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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास *
ऊपर लिखे अनुसार प्राकृत संस्कृतदेव वाणी है । श्री अरहंतदेव की निरक्षरी वाणीको सुनकर गणधरदेव ( गणपति ) अक्षररूप प्राकृत संस्कृतरूप रचना करी । द्वादशांग रूपवाणी यह देव वाणी है, यह विद्या है, शास्त्र विद्या (श्रुतज्ञान ) है, ( आत्माका ज्ञान ) धर्म है । इसके पढ़े बिना आत्मज्ञान नहीं और विद्यायें इङ्गलिश, उर्दू, फारसी, अर्धी सब भाषायें हैं । उदर भरने की भाषा है, विद्या संस्कृत प्राकृत्त ही है, उसे पढ़ना मुख्य कर्तव्य है इसको पढ़े बिना धर्मको नहीं जान सकता । इसीसे संस्कृत पढ़नेकी प्रार्थना की है। हमारी प्रार्थना स्वीकार कर हमें कृतार्थ करेंगे, पाठकगणोसे ऐसी आशा है । श्री स्वस्तिभद्रञ्चास्तु
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