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* श्री लँबेच समाजका इतिहास * ४७३ और सब द्वादशांगवाणीके एक अरब अड़सठ लाख छप्पन हजार पद है। अब अपने ज्ञानसे पाठकगण समझे कि द्वादशांगके ग्रन्थ शास्त्रोंसे अनेक गाढा भरेंगे। इतना जैन शास्त्रांका भण्डार था, जिसमें अनेक ग्रन्थ श्री शङ्कराचार्यने समुद्र में पटककर डुवाये और अनेक ग्रन्थ औरंगजेवने जलाकर पानी तपाकर जराये। तो भी अब भी नागोर कर्णाट देश आगरादि यपी आदिमें भण्डार भरे पड़े हैं। कितना जैन साहित्य था हमलोग कितने कृतनी हुये जिनका पढ़ना भी छोड़ दिया । श्रीमान् जगदीश शास्त्रीजी कहते रहै कि श्रीमान् वामाचरण भट्टाचार्य कहते रहे कि शंकराचार्यजीने जैन ग्रन्थ डुबोकर अच्छा नहीं किया। जैनियोंके प्रश्नोंको सिद्धान्त गढ़ डाले अब अष्टसहस्री प्रमेय कमल मार्तण्डमें उनसे चार-चार ऊपर कोटिके प्रश्नोत्तर रखे हैं। यह सब भारतकी निधि थी। जैन अजैन तो मतभेद हैं पर चीज तो सबके उपकार की थी। जर्मन में इतना जैन गन्थ पहुंच गया है सूचीपत्रकी कीमत दो सौ रुपये हैं सो हमारी प्रार्थना यही है कि संस्कृतका अभ्यास करो तो घरके रत्न मालूम हो। कलाप व्याकरण