Book Title: Lavechu Digambar Jain Samaj
Author(s): Zammanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jain Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 477
________________ ___*श्री लॅवेच समाजका इतिहास * ..rani और रावलपिंडीमें सोहनलाल खजाचीके मकानकी गृह प्रतिष्ठा कराई। श्री पृथ्वीराज रासेमें लिखा है कि पृथ्वीराजने कनौजपर राठोपर चढ़ाई की तो पालीवालों (पल्लीवाल) का निकास कनौजसे हैं। पल्लीवाल राठोरोंमें होने चाहिये। एक राजा कर्णाट देशका कलकत्ता कौलेज में आया उसने नैय्यायिक विद्वानोंसे प्रश्न किया कि सिषाधयिषा विरह विशिष्ट सिद्धयभावः पक्षता इसका प्रतिपादन करें। इस पर उसने शंका समाधान कई प्रकारके किये समुचित उत्तरप्र नहीं हुआ तब ५१) रु० विद्वानोंको पारितोषिक में देकर चला गया, जिससे विद्वानोंका अपमान न हो इससे मैंने यह समझा कि यह नव्य न्यायका विवेचन जो न दिया शान्तनपुर और तमाम बङ्गालमें है। वह कर्णाट देश से आया। वहाँ जैनाचार्योंका दवदवा ज्यादा रहा श्री भद्रबाहु आचार्य ७०० सात सौ मुनि सहित राजाचन्द्र गुप्त मुनि सहित उधर ही रहै। एक-एक गुणके अनन्त अनन्त अविभाग प्रतिच्छेदों का तथा पुद्गलकी एक

Loading...

Page Navigation
1 ... 475 476 477 478 479 480 481 482 483