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*श्रो बेचू समाजका इतिहास * ४७१ संहिता १ सन्धि संहिता जिनसेनत्रिवर्णाचार सोमसेनत्रिवर्णाचार और जैनसिद्धान्तग्नन्थ श्रीगोमटसार त्रैलोक्यसार आत्मख्यातिसमयसार पश्चास्तिकायप्रवचनसार नियमसार अध्यात्मशास्त्रोंका अभ्यास अध्ययन किया और पीछेसे धवलग्रन्थ जयधवलका भी विवेचन आया देखा मनन किया तथा पदर्शन भी परिशीलनमें आया और पड़ी मात्राके ग्रन्थ भी लगाये इत्यादि तथा धम्पपद वौद्धग्रन्थ और मनोविज्ञान स्वरोदय तथा ज्ञानार्णवजी आदिका भी अभ्यास किया सप्तभंगी तरंगिणी कौटिल्पनीतिः कामन्दकीनीतिः अहंन्नीतिः नीति वाक्यामृत आदिका परिशीलन किया और जैनसिद्धान्त द्वादशाङ्गवाणी रूप है जिसके पदों की संख्यादिसे जो ग्रन्थ निर्माण किये हुएसे गाढ़ाके गाढ़ा भर जायेंगे वे पढ़नेसे सब नहीं आते किन्तु तपश्चरण द्वारा श्रुतज्ञान ऋद्धि उत्पन्न होती है तब पूर्णश्रुतके बली होते हैं ।
वे बारह अङ्ग और पद इस प्रकार हैं १-आचारांग अठारह हजार पद २-सूत्रकृतांङ्ग छत्तीस हजार और व्यालीस पद