Book Title: Lavechu Digambar Jain Samaj
Author(s): Zammanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jain Calcutta

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Page 448
________________ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * क्षत्तात् किलत्रायतइत्युदयः क्षत्रस्य शब्दोभुवनेषुरूढ़ः ___ जौ कोई मारता हो, घाव करता हो उससे रक्षा कर सो क्षत्रिय है। जैन शास्त्र सर्वज्ञतीर्थङ्करका आगम कहता है जो सातभय रहित होकर अपने आत्माको अजर अमर समझता है। वही क्षत्रिय है रागादिक शत्रुओंको जीते सो जिंन और जिन भगवान् अरहन्तदेवका कहा हुआ धर्म जैन धर्म है जिसने रागादिक क्रोधादिक शत्रुओंको जीता वही जिन है वे भी अहिंसक है उनका कहा हुआ अहिंसाधर्म है अहिंसा धर्म वही क्षत्रिय धर्म है। वेदमें भी लिखते हैं माहिस्यात्सर्वाभूतानि मतमारो किसी जीवको। श्रीरामचन्द्रजीयोगवशिष्ठमें लिखते हैंनाहंरामोनमेवांछा विषयेषुचनमेमनः शान्तिमासितुमिच्छामिस्वात्मन्येवजिनोयथा। श्रीरामचन्द्रजी कहते हैं किनमे राम हूँ रामका अर्थ हैं रमन्तेयोगिनोयस्मिन् इतिरामः । जिसमें योगीलोग रमण कर उसे राम कहते हैं सो मैं

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