Book Title: Lavechu Digambar Jain Samaj
Author(s): Zammanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jain Calcutta

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Page 466
________________ भजन जिन पूजा सम पुण्य न दूजा, यह अनादि आगम वरणी कोटि कामको छोड़िके श्री जिनकी पूजा करनी । टेक | उठि प्रभात ही शुचि किरियाकर श्रीजिनके मंदिर जइये श्रीतिरागको नमस्कारकर श्रोजिन वरके गुण गइये | १ | अम्बर पहिर महा शुभ सुन्दर उज्ज्वल जल फिर भर लइये त्रिभुवनपतिको न्हवन कर गन्धोदक मस्तक लइये !! विधन रोग मिट जाय छिनकमें चित चञ्चलता पीर हरनी । कोटि ० ॥ १ ॥ थारीमें भरिये । अनुसरिये ॥ बसु विध दर सुधार मनोहर कञ्चन जल चन्दन शुभ अक्षत सोम किरन सम शुद्ध केवल पुष्प मनोहर चरु तुरन्त ताजे दीप रतन मय धूप दशांगी दश दिशिऊमें फल उत्कृष्ट चढ़ाबत प्रभुको सो पावत करिये । भरीये || अष्टम धरनी । कोटी० ॥ २ ॥

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