Book Title: Lavechu Digambar Jain Samaj
Author(s): Zammanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jain Calcutta

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Page 470
________________ ४६८ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ranmomr.w.www. wwwwww तर प्रयाग इलाहाबादमें जैनपाठशालामें नोकरी कर ली। फिर वहाँसे इन्दौर श्रीमान् राउराजा सर सेठ हुकुमचन्दजीकी नसियामें जैन विद्यालयमें नोकरी कर ली । छात्रोंको वोर्डिंग में रहकर वहाँ पर शाकटायन व्याकरण टीका अमोघवृत्ति ( राजा अमोघ वर्षकृत ) जैन व्याकरण पढ़ाया तथो श्री सागारधर्मामृतश्रावकाचार चन्द्रप्रभचरित तथा श्रीधर्मनाथ भगवानका धर्मशर्माभ्युदय काव्य आदि पढ़ाये और अजैन विद्यार्थी वीए के आते उन्हें रघुवंशके १३ मा सर्ग पढ़ाते रहे और इसके पहले मथुरामें रहकर जैन न्यायदीपिका परीक्षामुख श्रोधर्मशर्माभ्युदयमें तथा वाग्भट्टालंकार श्रीसर्वार्थसिद्धि आदिमें जैनमध्यमा भी उत्तीर्ण की थी फिर इन्दौरसे वि०सं० १९६८ सन् १९११ में दिल्ली दरवारके समय नोकरी छोड़ आये। दिल्ली दरवार श्रीपञ्चमजौर्जका देखा वहाँसे कलकत्ता चले आये जैन विद्यालयमें पढ़ाने लगे छः महीना बाद श्रीमान जगदीशशास्त्री स्याद्वाद महाविद्यालय जैन बनारससे १ पत्र श्रीमान् पदमराज रानीवालेके नाम लाये उन्होंने हमारे पास शास्त्रीजीको भेज दिया, हमने पूछा क्या चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमको १ कोठरी रहनेको चाहिये हम

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