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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
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साथ रघुवंश काव्य तर्कसंग्रह मेघदूत काव्य छन्दोग्रन्थ में श्रुतबोधमें बनारस के कौंस कालेजकी प्रथमा परीक्षा दी । विक्रम संवत् १९५३ में उत्तीर्ण हुए। इसके पहिले महामहोपाध्याय श्री रघुपति शास्त्रीजीके काका मुकुन्दपतिसे अमरकोश तीनो काण्ड पढ़े पीछे सारस्वत और सिद्धान्तचन्द्रिका पढ़ प्रथमा परीक्षा दी पीछे ४ खण्डमें खण्डशः मध्यमा परीक्षा भट्टिकाव्यमें दी, पर सिद्धान्तचन्द्रिका से काम नहीं चला तब सिद्धान्तकौमुदी पढ़ी मध्यमा परीक्षा में न्यायसिद्धान्तमुक्तावली थी, यद्यपि श्रीब्रह्मानन्द शास्त्री व्याकरणमें भाष्यान्तपाठी थे पर न्यायमें गतिकम होनेसे श्री पुरुषोत्तमशास्त्री दक्षिणात्यसे न्याय पढ़ा जो रावजीशास्त्री लश्करके शिष्य थे भिंडके ही थे मथुरा में जैनमहाविद्यालय में पढ़ाते थे मध्यमा परीक्षा में किरातार्जुनीय काव्य और माघकाव्य पढ़ा न्यायसिद्धान्त मुक्तावली तथा सिद्धान्तकौमुदी पढ़ भट्टिकाव्य में परीक्षा दी । सम्वत् १६६० में उत्तीर्ण हुए फिर गुजरात ईडरगढ़ नोकरी पर चले गये । वहाँसे बीमार होकर आये इससे सं० ६१-६२ में कपड़ों की दुकान कर ली पर दुकान करनेसे विद्या शिथिल होने लगी ।