Book Title: Lavechu Digambar Jain Samaj
Author(s): Zammanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jain Calcutta

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Page 468
________________ अपने विद्याभ्यासकी जीवनी अब हम इस लम्बेचू इतिहास पूर्णतामें अपने विद्याम्यासका संक्षिप्त विवरण देकर लम्बेच जातिके बालकोंसे नम्रनिवेदन करते हैं कि इस प्रकारकी संस्कृत विद्या और धर्मशास्त्रोंको पढ़कर तथा पढ़ाकर हमारी आशा पूरी कर संस्कृत विद्याका और जैनधर्मका उद्योत करेंगे। प्रथम ही सात वर्षकी अवस्थामें वि० संवत १९४४ में अक्षरारंभ किया । श्रीमान् पं० कल्याणमलजी मिश्र कान्यकुब्जसे जो जिनधर्मपर बड़ी श्रद्धा कर पुरुषार्थ सिद्ध पाय कीटीका करी सारा घर जल छानके पीता, उनके पुत्र माधोरामसे सारस्वत व्याकरण पूर्वार्द्ध पढ़ा । जैनपाठशाला उठ जानेसे श्रीमान् पं० ब्रह्मानन्द शास्त्री प्रभाकरके अवस्थी वर्नाक्यूलर स्कूल भिंडके संस्कृत विभागके मुख्याध्यापक उनसे सिद्धान्तचन्द्रिका उत्तराई व्याकरण पढ़ा और उसके

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