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* श्री लंबेचू समाजका इतिहास * गृहस्थमें बैठा हूँ सीता मेरे साथ है। तो विषयोमें मन है कहते हैं तो विषयोंको भी नहीं चाहता हूँ।
एकमें अपने आत्मामें निमग्न हो शान्ति चाहता हूँ।
जैसे जिन भगवान अरहंतदेव अपनी आत्मामें लीन हो शान्ति प्राप्तकी वैसीमें शान्ति चाहता हूँ तात्पर्य इस आत्माका स्वरूप ज्ञानमय है श्रीकुन्दकुन्द आचार्य कहते है। आदाणाणपमाणं आत्माज्ञान प्रमाण है जितना ज्ञान उतना ही आत्मा है और आत्मा है उतना ही ज्ञान है आत्मा ज्ञान स्वरूप है जैसे मिश्री और मिठास दो नहीं मिठास है से मिश्री है और मिश्री है वही मिठास है गुण
और गुणीका तादात्म्य सन्बन्ध है तब ज्ञान आत्मा एक चीज है ज्ञान स्वरूप ही आत्मा है जो आत्मा अपने ज्ञान मग्न हो जाय वही शान्ति है सुख है।
यत्सुखंत्रिषुलोकेषु तत्सखंशान्तचेतसां कुतस्तद्धनलुब्धानां इतश्चतश्चधावताम् १
जो सुख तीन लोकमें है वह शान्त चित्तवालोंका है वह सुख इधर उधर दौड़नेवाले धनके लोभियोंको कहाँ यह थाडासा उपदेश धारा इसलिये लिखी कि हम कौन है इस इतिहाससे मालूम होगा हम लोगोंका उच्च शिक्षा