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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास #
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं बस्त्रपूतं पिवेज्जलम् । सत्यपूतं वदेद्वाक्यं मनः पूतं समाचरेत् || दृष्टिकी पवित्रता वही है जो मार्गमें देखके चले और जलकी पवित्रता तव है, छानके पिये और वचनकी पविता वह है, सत्य वोले और मनकी पवित्रता वह है, जब प्राणीमात्र में समान आचरण करै ।
जैन सिद्धान्तका उपदेश है कि तुम जियो और जीने दो। दुनिया में सभी को अपने से कम न समझो सुख-दुख मैं किसीको सबके ऊपर दयाभाव राखो ।
अहिंसा परमोधर्म्मः यतो धर्मस्ततो जयः
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अहिंसा उत्कृष्ट धर्म है, जहाँ धर्म है वहीं जय है हमेशा यह विचार रखो कि मेरे निमित्तसे किसीका अहित न होवे वही सच्चा सम्यग् दृष्टि है । यह जैन धर्म |
क्षत्रिय धर्म है श्री जिनसेन आचार्य आदि पुराणमें लिखते हैं- क्षतत्राणे नियुक्तास्ते क्षत्रियाः स्मृता ।
जो निर्बलको सताता हो उसकी रक्षा करें वही क्षत्रिय धर्म है इसीको कालिदासजी भी अपने काव्य रघुवंशमें पुष्ट करते है ।