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* श्री लँबेच समाजका इतिहास * ४४३ वहाँ मुनि धर्मकी प्रवृत्ति नहीं है तो जैनमुनि दिगम्बर रहते । इसके लिये भारतवर्ष ही विशेष पुण्यभूमि है यह धर्मप्रधान देश था सो लोगों ने यूरुपकी भौतिक उन्नति देख लोग धर्मके तरफ प्रवृत्तिकम करने लगे हैं तो भी क्या इस देशमें पवित्रभूमि में आविर्भाव होता ही रहेगा । जब लोग आर्य मार्गसे विपरीत चलते हैं तब उपद्रवकी आशङ्का हो जाती है इस समय हवा विरुद्ध है फिर सुधरेगा |
आजकल के चित्र खींचकर एक भजन लिखते हैं । यहाँ से चलिये ज्ञानविवेक गयो ।
शास्त्र पढ़न और श्रवण गयो सब यासे ज्ञान मलीन भयो हित अनहित कोई बुझतु नाहीं ऐसो अंधाधुन्ध छ्यो १ धर्मप्रधान देश यह होकर अब यह अर्थप्रधान भयो भौतिक उन्नतिमानि मगन ले चेतनमें जड़वाद गह्यो २ खाद्य अखाद्यको बोध रखो नहिं यासे खाद्यपदार्थ गयो निज अनुभूति लखे अब क्योंकर चारित्रको नहिं लेश रह्यो ३ कोई किसीकी मानत नाही शिक्षाको जु अभाव भयो तर्कतीर्थकी तर्क चले नहिं देखो अब यह समय नयो ४