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* श्री लंबेचू समाजका इतिहास * ४४१ मानती नहीं आपका उदाहरण देती हैं। तब रामचन्द्रजी ने सीताजीको अग्निकुण्डमें प्रवेश करने की आज्ञा देकर परीक्षा ली, तब सीताजी अग्निकुण्डमें प्रवेश करते समय कहती है :
मनसि वचसिकाये जागरेस्वनमार्गे मम यदि पतिभावो राघवादन्यपुन्सि तदिदहतुमेशरीरं चन्हि कुण्डे-प्रचण्डे
सुकृतविकृतनीतेः देवसाक्षी त्वमेव ! यदि मैं रामचन्द्रजीके सिवाय किसी पर पुरुषोंमें मनसे, वचनसे, कायसे, अभिलाषा की होवे तो हे देव, हे जिनेन्द्रदेव, मेरा शरीर भस्म हो जाय। पुण्य और पापके देखनेमें आप ही गवाही हैं, तो तत्काल ही देवोंने अग्निकुण्डको सरोवर बना दिया और पानी इतना बढ़ा जो अपवाद करनेवाले डूबने लगे, तब प्रार्थना करने लगे कि माता मेरो रक्षा करो। तब देवोंने कम कर दिया देखो यह पातिव्रतधर्म था, माहात्म्य था अब उसकी रक्षा कौन करता है। उलटा नष्ट करनेका उपदेश होने लग गया समय की बात है यहाँ कोई प्रश्न करे कि यरुपादि देशोंमें