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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ४३६ ऐसी विभूतिमें लात मारती है, परन्तु अब पुरुष ही अपनी स्त्रियोंको व्यभिचाणिी बनानेका उपदेश देने लगे। तलाक बिल पास कर लिया, जो अपना पति पसन्द न आवे तो दूसरा कर लो। जिससे आपसमें मनुष्यों तक की हिंसा हो जाय। तब इस विषय और धन की तृष्णाने सुखको खो दिया। मृग तृष्णाकी तरह दुःख के ही कारण अपने आप बना लिये हैं। विधवा और विवाह इन शब्दोंसे शाब्द बोध नहीं होता जिसका पति नहीं रहा उसका विवाह कैसा ? किसी कविने कहा है :
सिंहगमन सुपुरुष वचन कदली फरत इकवार तिरिया तेल हमीर हट चढ़े न दूजी बार
असली सिंह नर मादा दो ही होते हैं। जो तिर्यञ्चों का राजा बतलाया है। वह जब सिंहीसे विषय करता है विषय करके मर जाता है और सिंहनीके गर्भमें एक नर एक मादा दो का गर्भ रह जाता है। वे दोनों पुष्ट होकर मांका पेट फार कर निकलते हैं। तात्पर्य ऐसे असली सिंह सिंहनी दोही रहते हैं, ऐसी किंवदन्ती है। तो