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२७८ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
समान नम्र ( मुलायम ) होता है नाक चपटी हो गई देखो मोह वश प्राणी क्या क्या करता है कोई दव देवी किसी का लड़का बच्चा करने में समर्थ नहीं परन्तु वहां मनोवांछित वानिक वन गया । पूर्व पुण्योदय से पीछे कंसको मलम भया कि तुम्हारा बैरी उत्पन्न हो गया तब उसने पूतनाका भेजना चाणूर मल्लोंका भेजना इत्यादि प्रयत्न किये । भवितव्य दुर्निवार सब प्रयत्न विफल हुए । पीछे श्रीकृष्ण महाराज से युद्ध हुआ, युद्ध में कंस मारा गया इधर शौर्यपुर ( सूरीपुर में ) समुद्र विजय की । महाराणी शिवादेवीके गर्भ में भगवान नेमीनाथ आवगे, ऐसा इन्द्र अवधि ज्ञानसे जानकर ६ महीना पहिलेसे ही नगरीकी शामा करनेके लिये कुबेरको भेजा, कुवेरने शौर्यपुरको बहुत सजाया राजा के महलों को सुसजित कर रत्न वृष्टिकी । हस्ती बैल केशरालीसहितसिंह दो हस्ती अपनी सूँढ़ (मुख से) कलश जल भरे पकड़ लक्ष्मीको स्नान कराते देखा इत्यादि १६ सोलह स्वप्न हुये । राजसभा में शिवादेवी माता गई। राजा समुद्र विजयने सिंहासन पर अद्धसिन दिया । माता स्वमका फल पूछती राजा फल कहते दोनो खुशी