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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३०७ वनमें प्रभासादि ६ वावड़ी आम्र वनमें और इसके आगे स्तूपभूमि जिसमें जिन विम्ब सहित स्तूप ही स्तूप है और माला मृगेन्द्र कमल आकाश गरुड हस्तीबैल सूर्य मयूरहंस इन दशचिन्होंको लिये स्तूपोंपर ध्वजाये हैं। फिर दूसरा स्वर्णमई कोट हैं, उसके आगे भूमिमें दश प्रकार कल्प वृक्ष हैं | आगे नवरत्नोंकी स्तूप भूमि है, दरवाजों पर द्वारपाल देव हैं। आठ-आठ चारों दिशाओंमें और तीसरा कोट स्फटिक मणिका है। उसके अगाड़ी अनेक सुगन्ध पुष्पनिके वन उनके आगे जयाङ्गण जिनमें हजार-हजार स्तम्भ है। सब जगह भव्य जीव धर्म कथा करते हैं। अगाडी बारह कोठदार बारह दरी जिनमें देवदेवी मनुष्यिणी पशु तथा मुनि साधू आदि सब प्राणी बैठते हैं। प्रथम सभामें वरदत्तादि गणधर और मुनि, दूजीमें कल्पवासी देवनिकी देवियाँ, ३ में आर्यिका राजमती आदि तथा श्राविकायें चोथी सभामें ज्योतिषी देवोंकी देवांगनायें, ५ वी में व्यन्तर देवोंकी देवाङ्गनायें, ६ सभामें भवनवासियांकी स्त्रियाँ, ७ वी सभामें दश प्रकार भवन वासीदेव, आठ वीं में अष्ट प्रकार व्यन्तर, ६ में पञ्च प्रकार