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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * वजरियाका मन्दिर खरौआ जैन गोलालारेकी शाखाका है, जिसका प्रबन्ध सुखलाल चौधरीके लड़कों के हाथमें है । जो इटावावाले पं० पुत्तूलाल जयचन्दलाल के कुटुम्बी हैं। तीसरा बड़ा मन्दिर जिससे रथ निकलता है, वह खरउआ मेकी मुख्यतामें पाँचो गोटका पञ्चायती समझा जाता
है। इसमें अग्रवाल भी रहे हैं। वैष्णव हो गये, कुछ रहे नहीं ।
अब अग्रवाल कुछ तो एकआदि केवल भादों में
आते हैं।
बड़े मन्दिर के पास एक जिनेन्द्रभूषण भट्टारकका बनवाया जती ग्वालियर सूरीपुरके भट्टारक दिगम्बरी जातियोंका है । उसका प्रबन्ध अब मेचुओके हाथ में है । एक नवीन परेट पर पञ्चायती मन्दिर रेलके पास हैं । एक मन्दिर चैत्यालयके नाम से प्रसिद्ध हैं। ये दोनों मेरे सामने बने हैं। चैत्यालय मन्दिर गोलसिंगारे भाइयों ने बनवाया है। एक नशिया ( निपद्या ) स्थान त्यागी पुरुषोंके लिये बनवाई गई है। ठीक रेलवे स्टेशन से सटी हुई निकट है। इसकी जमीन श्रीमान् अग्रवाल दिगम्बर जैन, गिरधारीलाल के सुपुत्र और गुलजारीलालके भतीजे ने