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३६४ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * है वैसे विचारने की बात है कि परस्पर विनय करो । वहाँ पर भगवान्के नामको बीचमें घसीटनेका क्या काम जो भगवान् का विनय करते हैं। तो हमारा आपका क्या विनय भया और हम आपका परस्पर विनय करते हैं तो भगवान् नामको बीचमें लानेसे किसका विनय रहा। यह सब लोक प्रवाह है और चोहानोको चाहमान लिखा सो साहित्यमें सब जगह लिखा है कि क्षत्रिय लोगोंके (मान) आदर और यश ही धन होता है और कुछ नहीं हमीर आदिक बड़े-बड़े पृथ्वीराज सरीखोंने मुसलमान जवनत मस्तक हो गये छोड़ दिये ये लोग अपने बल पौरुषका स्वत्व रखते थे इन्हें परवाह न थी। यह क्या करेगा कपटीका कपट जान लेनेपर भी क्षत्रिय लोग यह समझते थे क्या करेगा। परन्तु कपटी अपने दाव पेच डालकर भुला देता। यही गलती राजपूतोंको धोखा दिया ।
क्षत्रिय लोग तो यह समझते ( स्ववीर्य गुप्ताहि मनो प्रसूति) अपने वीर्य अपने सामथ्यसे अपनी रक्षा करना यही कुलकर १४ मनुओंका उद्देश था। इससे वे परवाह रहै तो चाहमानका अर्थ यही है कि जो मान ( आदर )