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* श्री लंबेचू समाजका इतिहास * ३६५ चाहें स्वाभिमान हम ऐसे कुलके हैं जो शौर्यवीरसे सम्पन्न हैं। हम अनुचित काम न करें। यह मान भी लमेचुओंमें अधिकतर पाया जाता है। कोई भी लमेच होवे कोई भी बिना आदर कोई चीज नहीं लेता। भोजनादि भी बिना निमंत्रण नहीं करता।
हमें याद है कि हम संवत् १६५५ में हाथरसकी जिन बिम्ब प्रतिष्ठामें गये थे तो श्रीमान् पं० प्यारेलालजी पं० श्रीलालजी के पिता अलीगढ़वालेने पूछा आप कौन है हमने कहा कि लमेचू हैं तब ये कहने लगे कि तुम वे ही लमेचू हो जो कुआँमें गिर गये थे निकाले । तब पूछा कि भोजन करोगे तो उन्होंने जवाब दिया कि साहब हम तो खाकर (जीमकर) गिरे थे। तब हम बोले हां सब वे ही लमेचू हैं। ____ हम विक्रम संवत् १६६० संवत्में श्रीमान् पंडित धन्नालालजीके भेजे बन्बई पहुंचे। ईडरगढ़ जानेको तो हम जैन वोर्डिङ्ग गये। ठहरे वहां श्रीमान् पंडित वंशीधर शोलापुरवाले तथा नाथूराम प्रमीजी आदि थे। वोर्डिङ्गसे श्री मान्सेठी मानिकचन्द पानाचन्दकी गद्दीमें खारी कुई