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४०६ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास - निजी पुत्रोंसे धोती उठा लानेको कहा, तो उन्होंने मानके कारण धोती न लाये । तब राजा ने ग्वालिन पुत्रोंसे कहा, वे धोती उठा लाये । तब उसने ग्वालिनके पुत्रको ही राज्याधिकारी बनाया। इससे पुरीका राजा ग्वाला कहलाता है। ऐसा अभी २००७ में खण्ड गिरि को गये थे तब पुरी और कटक में गये तब विवरण पाया और बद्रीनारायणकी मूर्ति श्रीऋषभदेव भगवानकी है। श्यामवरण है, बैलका चिन्ह है । कैलाससे मोक्ष गये तब इन्हींको कैलाशपति बैलपर चढ़े, आदिसे पुकारे जाते हैं।
तो यही तो महादेव हैं, राग-द्व परहित वीतराग हैं। बद्रीनारायणके पास जो लक्ष्मण झूला है, नीचे खाई है, यह वही खाई है जो सगर चक्रवर्ती ६० हजार भागीरथ आदि पुत्रोंने खोदी थी, सब दब गये थे। अकेले भागीरथ बचे थे। नाशिकमें पाँच जैनदिगम्बर प्रतिमायें पञ्चपांडव कहकरके पुज रही है । गिरनारको दत्तात्रय कर पूजते ही हैं मुसलमान बाबा आदम करके पूजते हैं। फिर स्वरूप भेद डालकर मतद्वष करते हैं । यह भूल है, और अग्रवाल जातिका इतिहास देखा तो उसमें