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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास .. फिर भी चेत नहीं होता। समाजमें बड़े-बड़े धनाढ्य, राजा-महाराजा या उत्तम पुरुष हों, सबको ऐसी ही कामना रखनी चाहिये। परन्तु कार्य-मात्र साधक जानि विशेष गहले (बेहोश ) न होना चाहिये। किसी कविने कहा है-देखो, जब अन्त समय आता, तब इस शरीरको छोड़ यह आत्मा दूसरा शरीर धारण करने जाता है। तब उस समय इसकी क्या दशा होती है।
कवित
तात मात सुत दारा पछितात गात
रोवे धुनि माथ सब देखत खड़े रहैं । मैंल औ मिलापी मित्र प्यारे संग साथी
काहूना वसाती हाथ मलते पड़े रहैं। जीव जब जाता इस देहसे निकलता
पुण्य-पाप-ज्ञान लेता और सब योंही डरे हैं। देखो संसार दशा मोहमें तूं योंही फंसा आसन विभूति कैसे वासन पड़े रहै।
इसीसे तृष्णा, लोभ, लालच ज्यादा नहीं करना