________________
४३२
* श्री लंबेचू समाजका इतिहास #
करता है और स्वयं जेल जाना है। वधबंधन आदि के स्वयं दुख भोगता है, और मरकर नरक होता है और कुशील सेवन करना महापाप है । पर स्त्री वेश्या सेवन करना अनङ्ग क्रीड़ा करना नीच कर्म हैं । स्त्रीके सिवाय दूसरी स्त्रियोंको मा बहीन
सत्युरुष अपनी
उनकी
स्वदार सन्तोषव्रत रखते हैं । होती है बहुत दिन तक जीते हैं । आरामसे रहते हैं सब कोई इजत विश्वास रखते हैं, उत्तम पुरुष गिने जाते हैं । लौकिक और परमार्थ काम करनेमें समर्थ होते हैं । परलोक में स्वर्गादिसुख भोगते हैं । जो लोग व्यभिचार करते हैं उनके गर्मी, सुजाक आदि दुष्ट रोग हो जाते हैं, राजयक्ष्मा, तपेदिक होकर जल्दी चल बसते हैं । यहीं पर कुतियासरीखा मुख निकल आता है । गाल बैठ जाते हैं, मर जाते हैं। लोग माथे पीटते हैं, होता है। लाभ, लालच, तृष्णा, अधिक परिग्रह रखनेबालोंको चित्तमें शान्ति नहीं रहती, एक क्षणका भी साता सुख नहीं मिलता। यहां तक भोजन करते समय इतनी याद नहीं रहती कि मैं क्या खा गया और क्या खाना है
मर कर नरक
समझता है वे
सन्तान हृष्टपुष्ट