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४३६ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * प्रवृत्त हो, इन पञ्च पापोंको छोड़ हित शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये।
आजकलकी जनताने खाद्य-पदार्थों में अखाद्य-पदार्थ मिलाकर खाद्य-पदार्थ नष्ट कर दिये। असली चीनी नष्ट प्रायः कर दानाकी चीनी चला दी, जिसे डाक्टर दानाकी चीनी खानेसे चीनिया रोग ( लाला-प्रमेह ) होना बताते । असली घो नष्टप्रायः कर संसारमें भेजीटेबुल घी (वनस्पति) चला दिया। अमली शुद्ध औषधियोंको नष्टकर मछली का तेल, पखेरुओंका तेल पुष्टकारक चला दिया, जिससे उन पखेरु मछली प्राणियोंका घात कर परहिंसा हुई और अपनी बुद्धि खराब कर अपना घात किया। प्राणियोंको निरन्तर रोगी बनाये रखनेका व्यापार हो गया। डब्बाका दूध बनाकर बालकोंकी हृष्ट-पुष्ट शक्तिका हास किया। अनेक कल-पुर्जा बनाकर पशुओंकी रक्षा गई। मनुष्योंकी रक्षा गई । पशुओं और मनुष्योंसे काम नही लिया जाय, तब खानेको कौन देगा ? ऐसी-ऐसी कलें बनाई गई हैं, जिनसे जीतेजी पशुओंकी खाल खींचकर मुलायम जते बनाये जाते इत्यादि हिंसाका ही विस्तार हो गया। अब तो उच्च घरानेके