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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास #
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न देगा तो अहितकर बात कौन मानेगा इसलिये देवमें तीन गुण हो वही देव है । वही आप्त है उसकी पूजा करता है और जीवोंकी दया पालना जीवोंकी दया पूरी पूरी तौर से जबही पल सकती है जब हिंसा झूठ, चोरी और कुशील और परिग्रह अधिक तृष्णा ये पाँच पाप को त्यागे छोड़े ।
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हिंसा चार प्रकारकी कही (आरम्भी) जो रोटी पानी करने में खान पान बनाने में होती है दूसरी उद्यमी जो व्यापारादिमें होती है ब्राह्मणके उद्यमी पूजा पाठकी सामग्री आदि बनाने में होती है । क्षत्रियका उद्यम प्रजापालन शिष्टानुग्रह दुष्ट निग्रह करना दण्ड देना राज्यशासक काम-क्रोध, लोभ मोह, मद - मात्सर्य इन पड़वर्ग ( अरिषड़वर्ग ) अंतः शत्रुओं को जीतता हुआ (गोपाल) ग्वाला जैसे गौओंका पालन करता गौओके बच्चोंका हक रख दूध दुहता है वैसे ही प्रजाके हकोंकी रक्षाकर थोड़ा कर लेता वैसे ही थोड़ा कर लेता हुआ प्रजा पालन करना राजक्षत्रियोंका उद्यम है इसमें जो हिंसा होती वह क्षत्रियोंकी उद्यमी हिंसा है ।