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४२८ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति हरिआई पतिआई पञ्चस्थावरोंमें यत्नाचारसे प्रवर्ते और त्रसलट
आदिकपशुपर्यन्त त्रस जीवांकी रक्षा करै । _____ और तप अष्टमी चतुर्दशीको उपवास या एकाशन (एक बार भोजन करें) और प्रतिदिन दान आहार औषधि शास्त्र और अभय ये चार प्रकार दान ये षट्कर्म छ कर्म
कहै।
देवपूजा गुरूपास्ति स्वाध्यायः संयमस्तपः दानश्च तिगृहस्थानां षट्कर्माणि दिनेदिने
इनमें देवपूजा मुख्य हैं वह पञ्चकाप्तनुतिः कही अर्हन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु इन पञ्च परमेष्ठी की स्तुति करना देव सर्वज्ञ वीतराग हितोपदेश इन तीन गुण संयुक्त होवै वही देव आप्त सत्यवक्ता और पूज्य हो शक्ता है। जो सबको नहीं जानता वह सच्ची बात न कह सकेगा। जिसने कलकत्ता बम्बई नहीं देखी वह उसकी ठीक ठीक बात न कह सकेगा। इससे देवका सर्वज्ञ गुण होना चाहिये और वीतराग न होगा तो मुलाहिजेसे मोहसे औरकी और कहेगा और हितका उपदेश