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* श्री लँबेचू समाजका इतिहान *
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लिखा ही है पर अजैन विद्वान् ऋषि भी रात्रि भोजनको देखो मार्कण्डेय पुराण, शिवपुराण,
निषेध करते हैं। प्रभासपुराण आदि में :
अस्तंगते दिवानाथे तोयंरुधिर मुच्यते अन्नंमसिसमंप्रोक्तं मार्कण्डेयमहर्षिणा ?
श्री मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं कि सूर्य अस्त हो जाने पर रात्रि को जल रुधिर समान जान त्यागना चाहिये, और अन्न मांस समान जान छोड़ना चाहिये । रात्रि भौजनसे अनेक रोग हो जाते हैं । चोथे रात्रिको खाया हुआ अन्न कम पचता है। सूर्य की गर्मी से अन्न विशेष पचता है और पांच उदुम्बर फल, बड़फल, पीपरफल, ऊमरफल, और काठ फेाड़के निकले वह कठूमर फल पाकर अञ्जीर इत्यादि इन फलोंमें प्रत्यक्ष रिंगते हुये त्रस जीव दिखाई देते हैं । ये खाने योग्य नहीं और प्रत्येक गृहस्थका चाहिये कि सवेरे शौच से निवृत्ति होकर स्नान कर श्री जिनदेवकी पूजा करें। दिगम्बर जिनकी गुरु और निर्गन्थ उपासना करें स्वाध्याय करें । संयम दो प्रकार, इन्द्रिय संयय इन्द्रियोंका वशमें राखे और ६ कायके जीवों की रक्षा,