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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास
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लिखा है कि राजा अग्रसेन ने वैश्यकी कन्या ब्याही इससे अग्रवाल वैश्य हो गये यह बात कैसे बने जब मनुस्मृतिमें यह आज्ञा दी है कि क्षत्रिय वैश्यकी कन्या के साथ व्याह कर लेवें तो वैश्य कैसे हो जायें वीर्यकी प्रधानता से कुल होता है । तो फिर वैश्यकुल कहाँ हुआ, अनेक क्षत्रिय राजा वैश्योंकी कन्या लाये । वैश्य तो न भये और राजा अग्रसेन कौन क्षत्रिववंश में भये, सो भी नहीं मिला। इससे हमारी समझ में तो राजा यदुके दो पुत्र शूर और वीर शूरके समुद्रविजय दश पुत्र वसुदेव तक, तिससे यह देश दशाह कहलाया । सूरीपुर वटेश्वर आदि और वीरके तीन पुत्र उग्रसेन, देवसेनादि भये तब उग्रसेनकी सन्तान -दर-सन्तानमें ही होने चाहिये क्योंकि मारवाड़ी अग्रवालमें देवडा गोत्र हैं और देवडामें चौहान रहे । देवडाके चौहानों में होनेसे यदुवंश ही आ जाता है। चौहानोंमें जैनधर्मका ही प्रचार था ।