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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास *
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जैसे नगर में रहकर अपने देशकी प्रतिष्ठाको वृद्धिगत
किया है ।
श्रद्धेय !
आप संयम और चरित्रके दृढ़ श्राद्धालु हैं तथा क्रियाकाण्डके चतुर पण्डित हैं ।
विज्ञवर !
अभी जब कि वर्षा अभाव से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी, जनता एवं पशु अन्न और चारेके कष्ट से पीड़ित हो रहे थे । आपने उस समय हमलोगों को इन्द्रध्वज - विधान करनेका परामर्श दिया और हमारे किञ्चित संकेतपर इस महान कार्यका सम्पादन-भार ग्रहण कर लिया । बड़ी योग्हता और सच्ची लगनके साथ जाप्य, हवन, पूजादि विधान सम्बन्धी सभी क्रियाओंको बड़े परिश्रम के साथ यथावत् पूरा किया, जिससे जल-वृष्टि हुई और जनता में शान्ति एवं सुखका साम्राज्य फैल गया ।
आप ऐसे निस्पृह व्यक्ति हैं कि बिना किसी स्वार्थ और लालचके निरन्तर धार्मिक क्रियाओंके सम्पादनमें संलग्न और तत्पर रहते हैं ।