SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * ४११ जैसे नगर में रहकर अपने देशकी प्रतिष्ठाको वृद्धिगत किया है । श्रद्धेय ! आप संयम और चरित्रके दृढ़ श्राद्धालु हैं तथा क्रियाकाण्डके चतुर पण्डित हैं । विज्ञवर ! अभी जब कि वर्षा अभाव से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी, जनता एवं पशु अन्न और चारेके कष्ट से पीड़ित हो रहे थे । आपने उस समय हमलोगों को इन्द्रध्वज - विधान करनेका परामर्श दिया और हमारे किञ्चित संकेतपर इस महान कार्यका सम्पादन-भार ग्रहण कर लिया । बड़ी योग्हता और सच्ची लगनके साथ जाप्य, हवन, पूजादि विधान सम्बन्धी सभी क्रियाओंको बड़े परिश्रम के साथ यथावत् पूरा किया, जिससे जल-वृष्टि हुई और जनता में शान्ति एवं सुखका साम्राज्य फैल गया । आप ऐसे निस्पृह व्यक्ति हैं कि बिना किसी स्वार्थ और लालचके निरन्तर धार्मिक क्रियाओंके सम्पादनमें संलग्न और तत्पर रहते हैं ।
SR No.010527
Book TitleLavechu Digambar Jain Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZammanlal Jain
PublisherSohanlal Jain Calcutta
Publication Year1952
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy