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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३८५ स्फटिक रतननी मूरति सोहे । भवि जनना दीठा मनमोहे ।। ते वन्दो फीरोजाबाद । आया जाणी मन आल्हाद ।
फिर उसीकी १२ वीं ढालमें कहा है। सौरीपुर रलियामणो जनम्या नेमिजिणंद । यमुना तटिनीने तटे पूज्याँ होय अणंद ।। सौरीपुर उत्तरदिसे जमुना तटिनी पार । चन्दनवाड़ी नाम कहे तहाँ प्रतिमाछ अपार ॥
इत्यादि सूरीपुर और चंदवाड़का कथन उन्होंने भी लिखा है।
अब हम लमेचू जातिके रीति रिवाजोंसे यदुवंश और क्षत्रियत्वकी प्रमाणता दिखाते हैं।
लम्बेचू जातिमें प्रायः पोडश १६ संस्कार होते हैं। जब लड़केका विवाह होता है तो पं० आशाधरकृत प्रतिष्ठा पाठसे लिया हुआ बहुत-सा अंश परब्रह्म तथा श्री आदिक दिक्कुमारियोंका और मण्डप प्रतिष्ठादि विषय जिसमें है उस जैन विवाह पद्धतिसे चिरकालसे खरउआ पाँड़े जैन विवाह कराते आते हैं। ऐसी किंवदन्ती है कि जो अब पटिया लोग बोले जाते हैं जिन्होंसे उपर्युक्त पट्टावली
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