________________
A
ri
h an
-
.-------
-----
--..-.
.
-
---
-
-
--
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३८३ हतिकांतिसे लाकर विराजमान किये। श्री मूलनायक पार्श्वनाथ श्यामवर्ण और २ सफेद बृहत जिन विम्ब विराजमान तीन बड़ी-बड़ी वेदियोंमें विराजमान कर एक बड़ी रूपमें धर्मशाला दो चौक की बनवाई। कई उसमें मकान है, कोठरी है, जिन मंदिरकी नीव मैंने शास्त्रोक्त पञ्चकलश शिलान्यास नवरत्न पूर्वक पारद देकर कराया। जैसा कि प्रतिष्ठा तिलक वसुनन्दि प्रतिष्ठा पाठ में लिखा है उसी धर्मशालामें कूप आदि सब आराम है। ऊपर जिन मन्दिर है पूजन करो, धर्म साधन करो, शास्त्र सुनो, पढ़ी शास्त्र भण्डार भी कुछ तो बाबू मुन्नालालजीका हस्तलिखित संग्रह है बड़े प्रतापी और धर्मात्मा हुये। मृत्यु समय तत्वार्थसूत्र सुनते-सुनते समाधि सहित मरण किया और मरते समय मुट्ठी हाथों की बँधी गई वैसे हाथ खुले जाते हैं। उनका हम ऐसा देखा। __ अब उनके फार्मके अधीश बाबू सोहनलालजी है और लाला फुलजारीलालजी रईशकरहल भी बहुत धर्मात्मा थे। उन्होंने प्रायः तीर्थों में एक-एक कोठरी बनवाई। घरमें। प्राचीन चैत्यालय है। लाला चुनीलालके सुपुत्र वंशीधर