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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३८७ १०८ आहुति कराके पूजनादि कराते होंगे। अब केवल स्त्रियोंमें डुकरिया पुराण की रिवाज रह गई हैं; परन्तु प्रथा तो गर्भाधानकी चली आती हैं। पिताके दिये हुये ( पर्यङ्ग) पलग और गद्दी, तकिया, विस्तर जो द्विरागमन (गोनेमें ) आते हैं। वे सब काममें बिस्तरा लिये जाते हैं। स्वभावसे यद्यपि यह विषय गोप्य हैं, परन्तु सबके जानकारीके लिये लिखना पड़ता है। सो भी हम संक्षेपमें दिगदर्शन करानेको लिख रहे हैं। यह सबके यहाँ विवाह गीनेमें ये सब चीजें लड़कीवाला सबही जातियों में देते हैं। सोनेके समय विछा दिये जाते हैं। उस दिन रात्रिको भी मङ्गलकामनासे मङ्गल गीत गाती है। इसे फलचोक कहते, रजको पुष्परज कहते हैं। जैसे वेलि वगैरहमें फल लगके फल लगता है। यह बात गर्भाधान की खुशी की है, उत्तम सन्तान होने की आशा है, और अलीक हंसीका विषय नहीं क्योंकि किसी हिन्दी कविने कहा है किमूतके हम भी मूतके तुम भी मूतका जगत् पसारा है । कहत कवि तुम सुन लो भाई, मृतसे को को न्यारा है ।