________________
३८६
* श्री लॅवेचू समाजका इतिहास *
मिली हैं। ये पटिया लोग ब्राह्मण पुरोहित विवाह पढ़ाते रहे । काई समय असन्तुष्ट होकर वर कन्याको कूपमें पटक दिया और अपने भी गिरकर प्राण दिये, तबसे खरउआपाडे विवाह पढ़ाते हैं। और उनका हक्क विवाहमें जितना रुपया वरको खेत लग्न और टीका दरबाजे पर तथा विदाइगीके समय ( थरा ) थाल पांउ पखराउनीके समय वरको दिया जाता उतने रुपयों से पांडजीका उसके हिसाबसे पाड़ेजो की विनय बोलकर सब बरातियोंके समक्ष कहकर दिया जाता है। जो रुपया टीकाके समयमेंसे जब दिया जाता है। जब जिन मन्दिरमें दिया जाता है उसकाआधाथराके समय पांडेको दिया जाता है जब विवाहके पहिले वर्ष या तीसरे वर्ष ज्योतिष शास्त्रानुसार द्विरागमन ( मुकलावा मारवाड़ी भाषा में ) लिखा है। जब शुक्रके ताराके पीछे या बाम होनेसे उस तरफ विदा होकर आती है। तब ससुर घर आकर उस बहको प्रथम रजोदर्शन होता है। तो ४ दिन बाद मुहूर्त जब आ निकले तब स्नान कराया जाता,
और उस दिन स्त्रियाँ दिनमें चोक आदि पूर गीत आदि गोकर रिवाज पूरी करती हैं। इस समय पहले हवनादि