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३६० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * धेली न्योछावर माली नाईको बांट देते। फिर संघकी बिरादरी की जीमनवार करते और ओर ओल गोदी भरते समय उस बहूका देवर गर्भिणीके कानमें शंख लेकर बजाता, शंखधनि करता है। यह प्रथा खरउआ गोलारारे पद्मावतीपुर आदिमें शंख बजाने की नहीं, शंख लॅमेचुओंके ही बजाये जाते हैं। यह यदुवंशी होनेका प्रतीक है। यदुवंशी होना प्रमाणित करता हैं कि श्री नेमि भगवान् औव कृष्ण महाराज दोनोंने नागशय्यादली शंखध्वनि करी । इससे शंख बजाये जाते हैं। यह चाल पुरिखाओंसे सन्तानदर सन्तान प्रचलित हैं तथा जब पुत्र उत्पन्न होते हैं तब षष्ठी क्रिया जातकर्म चरुवा वाइविडंग आदि औषधियोंका क्वाथ होता है जब प्रसूतीके दरवाजे पर लिखनाधर क्वाथ किया जाता है। और क्वाथके जलसे लड़के दायी स्नान कराकर अघोर कुण्ड निकालकर ले जाती। नाल छेदा जाता, इस छटवी क्रियाको छटी कहते हैं इसमें स्त्रियां सारी रात्रि गीत गाती हैं सम्हाल रखती पीछ प्रसूतीके स्नान के दिन मुहूर्तसे स्नान पुरुषवारोंमें और स्नान करानेके नक्षत्रोंमें रेवती, उत्तरात्रय, रोहिणी, मृगशिरा,