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* श्री लॅबेचू समाजका इतिहास * ३६३ त्मने नमः। यह संवत् १५२२ वि० फाल्गुन वदी १ का लिखा ४८६ वर्षका पुराना लिखित है। श्री पद्मनन्दि मुनि श्री प्रभाचन्द्र आचार्यके शिष्य थे
::. : कर्ता और वे लोकचन्द्राचार्य लमेचूके शिष्य थे। प्रशस्तिके अन्तमें १७ श्लोक हैं, उससे पता चलता है कि लम्बकंचुक लम्बेचू गोत्रधर ( सोमदेव ) श्रावक-धर्म पालने वाले थे। उनकी स्त्री सुभद्रा थी, उसके दो पुत्र थेवासधर और हरिराज । हरिराजके पुत्र मनःसुख थे यह ही श्री पद्मनन्दि मुनि हुये गोत्रका श्लोक
लम्बकंचक सद्गोत्रनभः सोमोऽसमद्य त्तिः । सोमदेवो भवत्साधुभन्यलोक शिरोमणिः ॥१॥
इसमें कथायें जिन रात्रिवत माहात्म्य वर्णित है अन्तमें है। __इति श्री वर्द्धमानस्वामिकथावतारे जिनरात्रिव्रतमाहात्म्य प्रदर्शक मुनि श्री पद्मनन्दिविरचिते मनःसुखनामाङ्किते श्री वर्द्धमाननिर्वाणगमनोनामद्वितीयः सर्गः ।
यह १५२२ का लिखा है तो सो-पचहत्तरि वर्षका बना हुआ भी होगा, तब १४५४ वर्षके समय ये ही वासाधर मन्त्री राजा सारंगनरेन्द्र के होना निश्चित है। इन्हीं