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*श्री लवेचू समाजका इतिहास * ३६५ श्रीमञ्चन्द्रपाट नगरे महाराजाधिराज लखीर ११ श्रीरामचन्द्रदेवराज्ये तत्र श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये श्री मूलसङ्ग (गुर्जर गोष्ठी) इत्यादि हैं। इसमें गुर्जर शन्दसे (गूजर) लिखा है सो गूजर नहीं किन्तु गुजराती प्रतीक है ऐसे साध (साह) श्री जगसी (जगसिंह) इनको नीचे पुत्र पौत्रों में (हालू) से हमीर देल्हा) देल्हण इत्यादि संकेत क्षत्रीय पुत्रोंक हैं तब सोमश्रेष्ठीसे (सोमराज) लेना चाहिये । राजपुताने उदयपुरके इतिहाससे इन संकेतादिका स्पष्ट विवरण है।
आपने भी देखा होगा जैसे सारङ्ग नरेन्द्र अभयपाल जयचन्द और रामचन्द्र ये नाम चोहान तथा राठोर राजाओंके नामोंमें आये हैं। परन्तु यहां पर चोहान वंशी राजाओंका ही कथन है श्रीचन्द्रप्रभ चरितमें श्री वीर नन्दि आचार्य लिखते हैं। ____ गुणान्विता निर्मलवृत्त भौक्तिका नरोत्तमैः कण्ठविभूपणीकृता नहारयष्टिः परमेवदुर्लभा समन्तभद्रादिभवाच भारती गुणडोरेमेपोही निर्मलगोल गोल जिसमें मोती है। नरोतमैकण्ठविभूषणीकृता मनुष्योंमें उत्तम पुरुषोंने पहिरी