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* श्री लंबेचू समाजको इतिहास * अटका तब उतरा। भानेज जानि इन्हें अपने द्वीप ले गया और हनुमान नामसे उस द्वीपका नाम हनुरुद्वीप पड़ा। यह वही युरप हनुरुद्वीप होना चाहिये । हनुरुद्वीप का अपभ्रंश यरुप कहना चाहिये। हनुमानके वंशमें बन्दर पले थे। फिर उनके ध्वजामें चिह्न करके बानरवंशी कहाये और जैन रामायण तुलसीकृत आदिमें हनुमान आदि को बानर लिख मारा, यह सम्भावित नहीं। और रामायणमें भी तुलसीदासजीने भी लिखा है-हनुमदादि सब वानर वीरा, धरै मनोहर मनुज . शरीरा। यूरपक मनुष्योंके मुख आदि लाल-ललाई लिये होते। उधर सूर्यको किरण कम पड़ती, इससे गौर और ललाईक कारण बन्दर कह डाले।
कहनेका तात्पर्य यह है कि ये प्रदेश भी पहले भरतक्षेत्र में ही समझे जाते थे। जैन पुराणोंके अनुसार उधर भी जैन धर्मकी साधना थी तब तो शिलोन ( लङ्का ) में चोहान पाये गये। महीपाल चरित्रमें ये रावल माहपही महीपाल हो गये। ये महीपाल तो नरसिंहक लड़के लिखे और उदयपुरक इ० में ओझाजीने कहीं लड़के कहीं कर्णसिंह लिखे हैं। जिनको सिंहलद्वीपकी चोहान