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३७० * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * है-श्रीनेमि, जिनके दाहिनी ओर श्यामयक्ष (गोमेदयक्ष) और बांई ओर अम्बादेवी, जिसके हाथमें आम फलोंका गुच्छा आदि है। बालक गोदमें और यक्ष तीन शिरवाला इत्यादि है।
ऐसा ही हमने सूरीपुरके श्रीनेमिनाथजीकी प्रतिमाके यक्ष-यक्षिणी दोनों तरफ चमर ढोरते ठाड़े हैं। दिखाये हैं सोगिरनार पर्वतपर अम्बादेवीका मन्दिर भी जैन मन्दिर है, उसमें अब भी श्रीनेमिनाथ भगवान्के चरण हैं। ये मन्दिर सब राजा मण्डलिकके बनवाये हैं। इन्हीं मण्डलिक राजा और कुम्भाकी बहिनके साथ स्त्री-पुरुषांमें अन-मन हुई। तब समझानेके लिये पृथ्वीराज जनागढ़ गये और समझाकर अन-बन मिटाई। इससे यह प्रमाणित है कि परस्पर विवाह-सम्बन्ध थे। सीसोदेके राणा हमीर चन्दावत चोहानोंके भानेज थे ( सिंहलद्वीपके, लंकाके ) चोहान राजाकी पुत्री पद्मिनी राणा भीमको ब्याही थी। राणा लाखाके पुत्र लक्ष्यणसिंहके पुत्र कुम्भा ( कुम्भकर्ण ) थे। तब यह भी साबित होता है कि सिंहलद्वीप, सिलोन ( लङ्का ) तक चोहानोंका दौड़-दौड़ा था ।