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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३२१ उस स्थानपर इन्द्रवज्रसे चिन्हकर इन्द्रादिक देव निर्वाणमहोत्सव कर अपने अपने स्थातको चले गये। उसी स्थान पर गिरनार पर पांचवीं टोंक है। गुमठीदार टोंक है। जिसके दरवाजेमें दरबाजेके दोनों तरफ चमर ढोरते इन्द्र खड़े हैं। गुमठीमें चरण बहुत बड़े २ पुराने हैं। उसी गुमठीसे सटी हुई छोटी भित्तिमें पहाड़में कुली हुई श्रीनेमि नाथ भगवान् की हाथ पर हाथ रखे पद्मासन मूर्ति है। करीब डेढ़ फुट एक हाथ या डेढ़ हाथ ऊँची मूर्ति है । टोंकके बगल में उत्तर तरफ एक बड़ा भारी घंटा टँगा रहता है, उस टोंक गुमठी की उत्तर तरफ छोटी सी एक इश्च चौड़ी गुमठी की लंबाई बराबर नाली बना रखी है। उसमें प्रक्षाल भगवान्के अभिषेकका जल भरा रहता है । पंडाओं द्वारा उन्हीं चरणोंको दत्तात्रय मानकर वैष्णवभाई पूजते हैं। पंडा लोगोंको रुपया दो रुपया देते हैं और मुसलमान बाबा आदम पीर मानकर पूजते हैं। चरण और मूर्ति भनवान् नेमिनाथ स्वामी के हैं, और हिन्द वैष्णव ग्रन्थों में लिखते हैं। स्कन्धपुराण प्रभासखण्ड अध्याय १६ पृष्ठ २२१ ।
वामनोपि ततश्चक्र तत्रतीर्थावगाहनम्
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