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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३५० ___ यह निर्मूल है. क्योंकि स्वयं अपने लेखमें लिखा है कि राजा चन्द्रपालका दीवान रामसिंह हारुल था जो कि लम्बकंचुक लमेचू दिगम्बर जैन था। उसने विक्रम संवत् १०५३।१०५६ में कई जिन विम्ब प्रतिष्ठा कराई
और लम्बेचओं की ४ चौथी पट्टावलीमें चन्द्रपाल चन्द्रवार चन्द्रपाट स्थान आये उन्होंने चन्दवार बसाया
और उनके हाहुली राउ मंत्री थे। इन हारुल का ही नाम हाहुली राउ करके लिखा हो क्योंकि जो नागोर और साम्हरकी तरफ से ५ कुमर अन्तरवेद (गंगा यमुना के बीच) में आये उनमेंसे चन्द्रपाल चन्द्रवार स्थानमें आये
और चन्द्रवार शहर बसाया और इनसे ही लमेचूओंमें चन्दोरिया अलल चंदोरिया गोत्र प्रख्यात भया और उन्होंने ही चन्द्रप्रभ भगवान की स्फटिककी मूर्तिकी प्रतिष्ठा कराई और अब भी यह प्रतिभा प्रोजाबादके चंदप्रभ स्वामीके मन्दिरमें विराजमान है और भी ऐसी एक प्रति माचन्दवारमें एक मल्लाहके पास सुनते हैं वह देता नहीं, स्वयं पूजा करता है और वह मन्दिर भी लमेचुओंका बनवाया हुआ है और इस समय भी रपरिया गोत्रीय केशरीमलजी लमेचू जैनके प्रबन्धमें है तब चन्द्रपालको जैसवाल लिखना भूल है और रामसिंह मंत्री