________________
* श्री लॅबेच समाजका इतिहास *
३५५
मैंने एक दालानमें सौ-पचास साङ्गोपाङ्ग सुन्दर और अखण्डित देखी थी। जिन पर जैन यात्री आकर उस दालानमें उन प्रतिमाओं पर पानीका भरा लोटा रख कलेवा करते देखे तब मैंने देवीदासजी प्रोजावादवाले पद्मावती पुरवालसे कहा कि आप प्रोजावाद (फीरोजावाद) से प्रतिमा लाकर मेलामें पूजापाठ क्यों करते हो। इन्हींको इस वेदी स्थायीमें एक प्रतिमा विराजमानकर पूजापाठ करो तब स्यात् उन्होंने कहीं धरा दी होंगी उनमें माथुर गच्छ लिखा है सो माथुर कुलसे माथुर गच्छ लेना चाहिये क्योंकिआचार्योपाध्यायतपश्चिशैक्षग्लानगण कुलसंघसाधुमनोज्ञानां इस सूत्र २४ अध्याय ६ से आचार्योंके भी कुल होते हैं सो माथुर कुल माथुर गच्छके कोई वासुदेव गुरुभास्कर वासुदेव गुरु सूर्यके समान जिन्होंने मणवय कायाणिंदिय भवेण जिन्होंने मन वचन और कायसे इस भव संसारकी निन्दाकी है। काय से दिगम्बर भये बिना इस संसार की निन्दा केसे हो जायगी। और वे कोई संसारके मनुष्य व्यक्तिके पुत्र होना ही चाहिये इससे नारायण के देह समुद्भव लिखा है और माथुर गच्छ रूप (गगन) आकाश