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३२६ * श्री लँबेचू समाजका इतिहास * श्री. नेमिनाथ भगवानको पद्मासनस्थ ( नाशाग्रदृष्टि ) सौम्पदृष्टि ध्यान समाधि स्थिर दिगन्बर ( शिवः ) निर्वाण समय मोक्ष होते देखा, उसीके उत्तर क्षणमें ( सिद्धिं ) निःश्रेयससिद्धि) मोक्षसिद्धि आप्तवान प्राप्त भये । ऐसा (शिवः) शिव माने मोक्ष निर्वाण भया देखा और नेमिनाथ तो उनका नाम था ही। किन्तु निर्वाण प्राप्त भया, इस शिव व्यपदेश लगाकर उनके मूर्ति स्थापित कर दी। वैसीही दिगम्बर नाशाग्रदृष्टि हाथ पर हाथ रखे अभीष्ट सिद्धिके लिये उस दिन उनकी पूजा की। वैसा ही उनका स्मरण कर स्मरण तो अनुभव प्रत्यक्ष पूर्वक होता है। निर्वाणक १ समय पहिले प्रत्यक्ष थे, देख रहे थे और निर्वाण प्राप्त करनेके बाद ऊर्धगमन कर सिद्धालयमें विराजमान हुये, तब तो उनकी स्मृति ही रह गई। उनकी स्मृति के लिये उनकी मूर्ति प्रतिष्ठाकर स्थापित कर नेमिनाथ शिव ऐसा नाम रखा और उसी जिनमूर्तिकी पूजा की तथा इन्हीं श्री अरिष्टनेमिभगवान् २२ वें तीर्थकरके नामकी ऋचा, स्वस्तिनोऽरिष्टनेमियृहस्पतिर्दधातु इससे प्रत्येक मङ्गल कार्यमें हमारे ब्राह्मण विद्वान पंडित