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* श्री लँबेचू समाजका इतहास #
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गया। मुझे मालूम होता है कि गुजरातसे आकर बसे, गूजर अलल पड़ गई हो । बड़गूजर कुछ महत्वता लिये होने से बड़गूजर कहलाये ।
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कच्छी देशसे आये क्षत्रिय जेसलमेर में बसे, इससे जैसवाल हो गये। ये भी यादवों में से ही हैं ऐसे प्रतीत होते हैं (शांकभरी ) सांभरसे सवा लाख ग्राम लगता था, इसलिये सपादलक्ष विषय ( विषय देश ) सपादलक्ष देश साँभर कहलाया । जिसको ओझाजीने भी जहाँ तहाँ उदयपुर इतिहासके द्वि० खण्डमें लिखा है और जैन दिगम्बर प्रखर विद्वान पं० आशाधारजीने भी आशाधार प्रतिष्ठा पाठ में प्रशस्ति में लिखा है- ये स्वयं बघेले क्षत्रिय थे ( व्यारे बालान्वये ) यह पद दिया है, ( बघेर बालवंश में ) हम उत्पन्न हुये और अपनी वंशावलियोंमें राजा माणिकरावने १६६ विक्रम संवत में शाह ( साह ) पदवी भी दी जाती थी। जैसे राणा उडुमराव ( उडुमराय ) के पुत्र सुमेरसिंह ( उडुमराव ) शब्दको कुछ अस्तव्यस्त कर ( उद्धवराय ) छाप दिया है । श्रीमान् बाबु सोहनलाल जो मुन्नालाल द्वारकादास कलकत्ता घी के फार्मक