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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३३१ गर्भा बोलती थीं, अपने यहां जिनको छोटी २ हँड़ियोंमें छंदकर झेझी बोलते हैं। उधर ही ये सब ग्राम पाये जाते हैं। जब हम वि० संवत् १६७८ में पालीताना म्हेशाणा गये, शत्रुञ्जय आबूकी यात्रार्थ, तब वहांसे अजमेर ही पहुंचे थे, वे सब इतिहास जाननेके स्थान हैं। इधर ही कहीं लांचा प्रदेश है और काञ्चनगिरि ( सोनगढ़ ) तो श्री काजीस्वामी जो श्वेताम्बर दृढिया थे, अब दिगम्बरी जैन हो गये हैं, जो समय सारका श्रेष्ठ व्याख्यान निश्चयनयके खिचावलिये देते हैं, वहीं कहीं सोनगरा है। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता मुंशी देवीप्रसादके यहां एक पुराने हस्तलिखित गुटके तथा फुटकर संग्रहमें वि० सं० १४४२ से वि० सं० १८८६ तक की २१४ जन्मपत्रियाँ हैं। उसमें मेवाड़के राणाओं, डूंगरपुरके रावलों, जोधपुर, बीकानेर, ईडर, रतलाम, नागोर, मेड़ता भिणाय और खारवा आदि के राठोडों, चौहानों, कोटा बूंदीके हाड़ो ( चोहानों ), सिरोहीके देवड़ों, जयपुरके कछवाहों, ग्वालियरके तोवरों, जैसलमेरके भाटियों ( जामगर गुजरात )के जामों, रीवाँके बघेलों, अनूपशहरके बड़गूजरों, ओर्छाके बुन्देलों, राजगढ़