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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * ३५१ इस लेखके शाकंभरीश्वरसे अभिप्राय नाडोलके चोहाने से हैं ( चोहान मात्र)। समस्त चोहान सब देशोंके चोहान (साँभर ) से शाकंभरीश्वर या संभरी नरेश कहलाते हैं। ऊपर भी हम लिख आये हैं कि कई ठिकाने राज• पूताने ( उदयपुर इतिहासके द्वितीय खंडमें ) सांभरी नरेश लिखा है। भोगीरायने रावत गोत्रके कवित्तमें सांभरी नरेश भरतपाल ये पद आये हैं। इससे कोई सन्देह नहीं रह जाता कि लँमेचू बंश चोहान और यदुवंशी नहीं है।
और भी विक्रम संवत् १३५८ माघ सुदी १० के दिन महाराजाधिराज श्री समरसिंह देव ( तेजसिंहके पुत्र ) के राज्यके समय प्रतिहार पडिहारवंशीय, महारावत, राजश्री......राजमाताके बेटे राजपुत्र धारसिंहने श्रीभोज स्वामी देवजगती राजा भोजके बनवाये हुए मन्दिरमें प्रशंसित टीका सहित बनवाया दूसरा शिलालेख है, जिसका आशय यह है कि रावल समरसिंहने अपनी माता जयन्तल्ल देवीके श्रेय निमित्त श्री भत पुरीय गच्छके आचार्योंकी पोषधशालाको कुछ भूमि दी।
और भी १३३५ शिलालेख है। बैशाख सु० ५ का